श्रीकृष्णस्तुति:

आचार्य नितिन भारद्वाज:
राधेश्यामं मेघवर्णं प्रियनयनं शुभाङ्गम्,

चंद्रकांतम् ओजवदनं छविरामं मनमोहनम्। 

सात्विकं सुबोधं सुमनसं शुभ~शगुनम्,      

वंदे श्री गोपालं ब्रह्मरूपिणं सुशान्तम्।।

 

बालमुकुन्दं वंशीकरं बैजंतीमालां सुशोभितम्,     

 रविकातं जलजमुखं मलय~करचरणं सुदर्शनम्।         

केशर~ तिलकं मयूर~किरीटं शुभ्ररत्नं धारिणम्,                 

वंदे श्रीगोविन्दं सोड्हम् स्वर्ण~भूषितं सुभाषितम्।। 

 

राधारमणं ब्रह्म~शयनं छविललितं लीलाधरम्,   

 दयावंतं क्षमाशीलं करुण~अनुराग रूपिणम्।       

प्राणाधारं प्रेम~निधानं चिरंतनं निरंतरम्,     

वंदे श्री~मनमोहनं सर्व मोह~माया नाशनम्।।


गिरीधरं विद्याधरं गीताधारं विश्वंभरम्,

 ॐ~कारं बीजमंत्रं योगमूलं निरंजनम्। 

निर्गुण~रूपं सगुण~रूपं विष्णु~रूपिणं सनातनम्

वन्दे श्री~वासुदेवम् अनंत व्याप्तं जगदीश्वरम्।।


योगयोगेश्वरं राजराजेश्वरं श्री~कर्ता परमेश्वरम्,  

सर्वलोकं सुदर्शन~चक्रं शंख~शार्ङ्गं धर्ताधरम्। 

ज्ञानवंतं कलावंतं धैर्यवंतं  सुरेश्वरम्,               

वंदे श्रीकृष्णं भव~भय हरणं सर्व लोकैकनाथनम्।।    


इति श्री दीनबन्धु परमेश्वरम्!!       

आचार्य नितिन भारद्वाजः, 

आध्यात्मिकसामाजिकचिंत्तकलेखकश्च , गुनानगरम्,

मध्यप्रदेश:।

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