पुस्तकालय: (लेखक:- शिवा शर्मा)
विविधपुस्तकानां सङ्ग्रह: यत्र भवति स: पुस्तकालय: इति कथ्यते । पुस्तकानामालय: इति पुस्तकालय:।
मया अनुभवङ्कृतं यत् पुस्तकालये अवर्णनीयैव ऊर्जा सञ्चरति। शब्दगुणकमाकाशमिति दर्शनशास्त्रे मया पठितं परन्तु पुस्तकालये गत्वा अहमस्य साक्षादनुभवमपि कृतवान्।
पुस्तकालयस्य प्रकोष्ठं गत्वैव मस्तिष्के ज्ञानधारा प्रवहति। बुद्धौ तीव्रता आगच्छति। अध्ययने मन: रमते। पठितविषयस्य शीघ्रमेव बोधं जायते। विषय: सरल: भवति। एका अपरैव शान्तिर्भवति पुस्तकालये। एतत् पुस्तकस्थज्ञानस्य प्रभाव: अस्ति। तस्यैव ज्ञानस्य ऊर्जा वातावरणे तनुते। तदा य: कोपि तस्य ज्ञानस्य मार्गे आगच्छति तस्य मस्तिष्के परमानन्दं भवति अतः स: स्वाध्यायप्रिय: ज्ञानस्य पिपासु च जायते।
तत: छात्रै: अध्ययनार्थं पुस्तकालयं नूनमेव गन्तव्यानीति।
-शिवकुमार: शर्मा (संस्कृत शिक्षक: नाङ्गे ठाकुर: बिलासपुरम्)
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विभिन्न पुस्तकों का संग्रह जहां होता है उसे पुस्तकालय कहते हैं। "पुस्तकों का घर पुस्तकालय"
मैंने अनुभव किया कि पुस्तकालय में एक अवर्णनीय ही ऊर्जा होती है। शब्द आकाश का गुण है यह दर्शन शास्त्र में पढ़ा था लेकिन पुस्तकालय में मैंने इसका साक्षात अनुभव किया। पुस्तकालय में जाते ही मस्तिष्क में ज्ञान धारा बहने लगती है, बुद्धि में तीव्रता आ जाती है, अध्ययन में मन लगता है, पढ़े विषय का शीघ्र बोध हो जाता है, विषय सरल लगता है। पुस्तकालय में एक अलग ही शान्ति होती है शायद यह पुस्तकों में स्थित दुर्लभ ज्ञान का प्रभाव है उसी ज्ञान की ऊर्जा वातावरण में फैल जाती है , जब कोई उस ऊर्जा के सम्पर्क में आता है उसे परमानंद की प्राप्ति होती है , वह स्वाध्याय प्रिय होकर ज्ञान का पिपासु हो जाता है। अतः छात्रों को अध्ययन करने पुस्तकालय में अवश्य ही जाना चाहिए।
-शिवकुमार शर्मा (संस्कृत शिक्षक:नाँगे- ठाकुर: बिलासपुरम्)

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