नारी दिवस ( नेहा गौतम)
महिला दिवस
अरे!आज 8 मार्च का दिन है,
महिला दिवस के सम्मान में चारो तरफ कवितायें और स्लोगन कहाँ कम है।
मीरा को ज़हर पिलाना और सतियों के नाम पर स्त्री को जलाना,
अरे!ये समाज का कैसा प्रचलन है।।
कहनेे को तो वह शक्ति है,
फिर वो क्यों अब तक बनी गुमनाम हस्ती है।
कहनेे को तो उसे कहा गया पुरुषो जैसे अधिकारों की अधिकारी,
फिर वो क्यों अब तक बन कर रह गई अबला बेचारी।।
क्यों जब-जब उसकी आबरू पर दाग लगाया गया,
हर बार उसे ही समाज में गलत ठहराया गया।
क्यों उसके पहनावे पर सवाल उठाया गया,
क्यों उसे ही समाज में बुरा नजरिया दिखाया गया।।
क्यों बेटे की चाहत के लिए,
उसकी कोख में पल रही बच्ची को मरवाया गया।
क्यों उसे ही दहेज के नाम पर,
आग में जलाया गया।।
क्यों रुक्मणि को ,राजा के द्वारा जिंदा ही चिनवाया गया।
क्यों सबको शिक्षित करने वाली को, शिक्षा से दूर करवाया गया।।
उनकी इस व्यथा को महसूस करके नेहा ये कह रही:-
जिस दिन औरत को दहेज के लिए जलाया नहीं जाए,
जिस दिन उसकी आबरू पर कोई दाग लगाया नहीं जाए।
जिस दिन उसे शिक्षा से दूर नहीं करवाया जाए,
जिस दिन भ्रूण में उसकी बच्ची को ना मरवाया जाए।
जिस दिन रुक्मणी को बलि के नाम पर उसे जिंदा ना चिनवाया जाए,
उस दिन समझ लो कि हर दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाए।।
- लेखिका नेहा गौतम / बिलासपुर हिमाचल प्रदेश।

Nice lines...
जवाब देंहटाएंNice line thinking good
जवाब देंहटाएंवाह 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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