किसकी सुनूं? (-कवि अभिषेक शर्मा)



किसकी सुनूं?

मन की सुनूं या तन की सुनूं,

भूखे किसी निर्धन की सुनूं।

सुनूं किसी दौलत के प्यारे की,

या फिर किसी कलम की सुनूं।।


सूरज की किरण की सुनूं,

खास किसी मधुबन की सुनूं।

सबसे आगे रख कर तुमको,

अपने इस चित प्रसन्न की सुनूं।।


सुबह सुनूं या शाम सुनूं,

पवित्र कोई यूं ज्ञान सुनूं।

लाचार से इंसान की सुनूं,

बदले इस जहान की सुनूं।।


रुके कदमों की आवाज सुनूं,

बुझे जो चिराग उस शाम की सुनूं।

जीवन को समझ खिलौना गए जो,

जज़्बे ताकत मैं कहां की सुनूं।।


जन्म मृत्यु के सच की सुनूं,

शान से जिए जो उन की सुनूं।

सुनते सुनते निकालूं जीवन,

कुछ तुम भी सुनो कुछ मैं भी सुनूं।।


हारी उन आंखों की सुनूं,

धोखेबाजों की मीठी जुबान की सुनूं।

सब खोकर हस्ता उस जान की सुनूं,

पाकर सब किए अभिमान की सुनूं।।


अपने प्रेमी जान की सुनूं,

सबसे प्यारी मेरी मां की सुनूं।

स्वार्थी हुए इंसान की सुनूं,

या भारत मां के जवान की सुनूं।।


तारों भरे ये गगन की सुनूं,

किसी के सच्चे मन की सुनूं।

सहायता करते समक्ष रखा जो,

चित्रकार भईया की सुनूं।।


संतुष्ट किसान के मन की सुनूं,

सच्चे किसी के स्वप्न की सुनूं।

किस्सा जीत हार का सुनूं,

कहानी पिता के प्यार की सुनूं।।


जिंदगी की कठिन जान के वो,

लड़े जो हक को जुबान की सुनूं।

जिनकी वजह से छोड़ा कइयों को,

उन स्वार्थी बेइमानों की सुनूं।।


अल्लाह और भगवान की सुनूं,

धर्म अनेक वहां की सुनूं।

बिकते है जो चंद पैसों से,

उन लोगों के ईमान की सुनूं।।


खुद से किए कुछ प्रश्न जो यूं,

अब उनके आगे जबाव सुनूं।

इंसानियत की छोटे उगते पौधे,

जाएंगे इक दिन ये जाग सुनूं।।


गलत न किसी की बारे सुनूं,

जीवन से कोई न हारे सुनूं।

हक का खाकर कटे जीवन ये,

सबसे अच्छे यूं विचार सुनूं।।


दुनिया के सच और झूठ को जान,

अपने प्यारे पितु मां की सुनूं।

देशभक्त भरे जिस देश में ,

भारत की गाथा महान की सुनूं।।


-कवि अभिषेक शर्मा ✍🏼✍🏼

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