हिन्दी कविता - नारी ( शिव कुमार शर्मा)
नारी
अनन्त वनस्पति, सुन्दर अनुपम पुष्प,
असीमित जल से पूरित सागर-नदियां,
अम्बर छूते पर्वत, दूर तक फैले मैदान,
झर-झर करते झरने, तपते रेगिस्तान,
सबको समेटे खड़ी है यह प्रकृति,
नित्य - नियमों के बन्धन में बंधकर,
कभी कर्मविचलित नहीं होती प्रकृति,
क्योंकि वह एक नारी है ।
दावानल, भुकम्प, सुनामी, बाढ़,
खनन, भूस्खलन, आपदाएं हजार,
मानवनिर्मित कष्ट-अपार, कुविकार,
जल, वथल, नभ, वायु, सब दूषित
फिर भी निजसन्तान को कोख में,
सुरक्षित रखकर मङ्गल करती प्रकृति,
क्योंकि वह एक नारी है।
बस यूं ही घर घर में अनेकों दुखों को सहती
अनेको जिम्मेवारियों का बोझ उठाती
स्वयं खिन्न होने पर भी सबको प्रसन्न रखती
हर घर की शोभा, रौनक, सुन्दरता, खुशी
वही होती है, क्योंकि वह एक नारी है।
- शिवकुमार शर्मा (शिवा)✍🏼
अन्तरराष्ट्रीय स्त्रीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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