प्रिये! तुम आ जाओ ना ( शिवकुमार शर्मा)
प्रिये! तुम आ जाओ ना
एक पल यूं साथ बैठकर,
दो बातें मेरी सुन लो ना,
कुछ कहने दो मुझको भी,
कुछ तो तुम भी कह दो ना।
बस यूं एकटक देखो बस,
ये पलकें ना झपकाओ तुम,
मुझको नजरों ही नज़रों,
सब शिकवे बयां कर लेने दो।
वो ठहाके की हंसी तुम्हारी,
सुने बरसों बीत गए,
मेरी नादानी हरकत पर,
तुम फिर थोड़ा हँस लो ना।
यूं भावुक से अंदाज में,
कुछ बातें करते-करते,
अपने सर को मेरे ,
कांधे पर तुम रख दो ना।
दुनिया की रीति से डरकर,
यूं उदास होकर ना बैठा करो,
गले लगाकर मुझको अपने,
हाथों को थोड़ा कस लो ना।
आओ कल्पना की दुनिया में,
हम-तुम दोनों कुछ-क्षण चलें,
तुम भी मुझको अपना लेना,
मैं तुमको गले लगा लूंगा।
ये मिलन आज इतिहास बने,
कुछ यूं तुम मिल जाओ ना,
मैं बनूँ प्रेमी भँवरा सा,
तुम बन कुसुम खिल जाओ ना।
कोई प्रेम की तान सुनाओ ना,
प्रिये! तुम आ जाओ ना ।
-कवि शिवकुमार शर्मा (शिवा)✍🏼✍🏼

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